
विकास की अवधारणा – वृद्धि और विकास में अंतर
Child Developement and Pedagogy For #CTET: CTET में बाल विकास और शिक्षण शास्त्र विषय से 30 प्रश्न पूछे जाते हैं।सभी प्रश्न Pedagogy (शिक्षण विधि) से होते हैं। हम छात्रों को सम्पूर्ण विषय अध्यायवार पढ़ाते हैं। जिसे आप PDF में भी Download कर सकते हैं। साथ ही साथ इसे अच्छे से समझने के लिए वीडियो को अंत तक जरूर देखें।


विकास की अवधारणा
विकास की प्रक्रिया एक अविरल, क्रमिक तथा सतत् प्रक्रिया होती है। विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक, क्रियात्मक संज्ञानात्मक, संवेगात्मक, भाषागत तथा सामाजिक विकास होता है। विकास की इस प्रक्रिया में रुचियों, आदतों, दृष्टिकोण, जीवन-मूल्य, स्वभाव, व्यक्तित्व, व्यवहार इत्यादि का विकास भी शामिल है।
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बाल विकास का तात्पर्य
बाल विकास का तात्पर्य है “बालक के विकास की प्रक्रिया”। बालक के विकास की प्रक्रिया उसके जन्म से पूर्व गर्भ में ही प्रारम्भ हो जाती। विकास को इस प्रक्रिया में वह गर्भावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढावस्था आदि विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए परिपक्वता की स्थिति प्राप्त करता है।
बाल विकास की इस अवधि में हम विभिन्न बिन्दुओं का अध्ययन करते हैं।
- जन्म लेने से पूर्व एवं जन्म लेने के बाद परिपक्व होने तक बालक में किस प्रकार के परिवर्तन होते हैं।
- बालक में होने वाले परिवर्तनों का विशेष आयु के साथ क्या सम्बन्ध होता है?
- आयु के साथ होने वाले परिवर्तनों का क्या स्वरूप होता है?
- बालकों में होने वाले उपरोक्त परिवर्तनों के लिए कौन-से कारक जिम्मेदार होते हैं?
- बालक में समय-समय पर होने वाले उपरोक्त परिवर्तन उसके व्यवहार को किस प्रकार से प्रभावित करते हैं?
- क्या पिछले परिवर्तनों के आधार पर बालक में भविष्य में होने वाले गुणात्मक एवं परिमाणात्मक परिवर्तनों की भविष्यवाणी की जा सकती है?
- क्या सभी बालकों में वृद्धि एवं विकास सम्बन्धी परिवर्तनों का स्वरूप एक जैसा होता है अथवा व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुरूप इनमें अन्तर होता है?
- बालकों में पाए जाने वाले व्यक्तिगत विभिन्नताओं के लिए किस प्रकार के आनुवंशिक एवं परिवेशजन्य प्रभाव उत्तरदायी की होते हैं?
- के गर्भ में आने के बाद निरन्तर प्रगति होती रहती है। इस प्रगति का विभिन्न आयु तथा अवस्था विशेष में क्या स्वरूप होता है।
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वृद्धि और विकास में अंतर
वृद्धि एवं विकास का प्रयोग लोग प्रायः पर्यायवाची शब्दों के रूप में करते हैं। अवधारणात्मक रूप से देखा जाए, तो इन दोनों में अन्तर होता है। इस अन्तर को हम निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं।
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